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आवारा बादल

जुदाई

मीना भाभी के साथ हमबिस्तर होने से अब तो रवि की दिनचर्या ही बदल गई थी । वह रात मीना भाभी के साथ गुजारने लगा । जब रात में जागरण होगा तो दिन में नींद आयेगी ही । नींद पूरी नहीं होने के कारण स्कूल में भी ऊंघने लगा था वह । अध्यापकों ने इसकी शिकायत सरपंच साहब से कर दी । सरपंच ने खूब डांटा रवि को । रवि ने भी बहाना बना दिया कि वह रात को देर तक पढ़ता रहता है इसलिए दिन में नींद आ जाती है, वह क्या करे । सरपंच साहब मान भी गये । अविश्वास करने का कोई कारण भी नहीं था उनके पास ।
रवि और मीना भाभी की "रास लीला" खूब हिट हुई । मीना भाभी को भी एक पढा लिखा साहित्यिक अभिरुचि का प्रेमी मिल गया था जो बातें बनाने में माहिर था । शब्दों की बाजीगरी कर सकता था । शेरो शायरी सुना सकता था । उसकी आंखों, लबों, बालों, गालों पर कविताएं सुना सकता था । स्मार्ट तो था ही वह , होशियार भी था । इतना सब कुछ तो था रवि के पास । और क्या चाहिए था उसे ?  इसके अलावा मासूमियत भी थी रवि के पास  । इस तरह मीना भाभी और रवि का प्रेम परवान चढ़ने लगा । उन्होंने समाज की सब मर्यादाओं को लांघ लिया था । इस सबका नतीजा यह हुआ कि रवि का ध्यान पढाई लिखाई से बिल्कुल हट गया था और हरदम मीना भाभी के खयालों में खोने लगा । बड़ी मुश्किल से पास हुआ था वह उस साल । सबको बड़ा आश्चर्य हुआ कि ऐसा क्या हो गया जो एक होनहार लड़का थर्ड डिवीजन से पास हुआ है ? इतना होशियार बालक अचानक मंद बुद्धि का कैसे हो गया ? ये किसी को पता नहीं चल पाया कि रवि के कदम पतन की ओर बढ चले हैं । वह आवारगी के रास्ते पर,चल पड़ा है ?

रवि की इस हालत को देखकर उसकी मां को पक्का यकीन हो गया था कि किसी विरोधी ने रवि पर कोई जादू टोना कर दिया है । वह यह मानती थी कि सरपंच के विरोधी लोगों ने किसी सयाने भोपा से मिलकर यह खेल किया है या फिर किसी दुश्मन ने कोई जादू मंतर चलाया है । रवि ने कहा कि ये जादू मंतर सब बकवास हैं मगर उसकी सुने कौन ? मां ने सब भोपा, जोगी, तंत्र मंत्र वाले आजमा लिये मगर कोई असर नहीं हुआ । मर्ज बढता गया ज्यों ज्यों दवा की । 

सब चीजें सबके अनुकूल नहीं होती हैं । एक दिन जब संतोष दिल्ली से वापस गांव आया तो उसने रवि और मीना को हंस हंसकर बातें करते हुये देख लिया था । वह काफी दिनों से मीना में हुये परिवर्तन भी देख रहा था । मीना बिना किसी बात पर भी हंसती ही रहती थी । इससे संतोष को आश्चर्य होने लगा और वह समझ नहीं पा रहा था कि मीना ऐसा व्यवहार क्यों कर रही है । रवि का उनके घर में आना जाना बहुत बढ़ गया था । 

दिल्ली में संतोष को भी समस्याएं रहती थी । कब तक खुद खाना बनाये ? घर का काम भी करे और ठेकेदारी भी करे । उसने शांति ताई से कहा "अबकी बार मैं मीना और मुन्ने को दिल्ली ले जाना चाहता हूं । कुछ आराम मिल जाएगा" । मीना यह सुनकर सन्न रह गई । वह दिल्ली जाना नहीं चाहती थी । उसने सासू मां के अकेले रह जाने का हवाला भी दिया । दिल्ली में कैसे रहेगी वह , यह भी दुहाई दी मगर इस बार संतोष ने गांठ बांध ली थी कि मीना को दिल्ली चलना है तो चलना है, बस । और कुछ नहीं । शांति ताई ने भी हामी भर दी थी । मगर मीना रवि को छोड़कर जाना नहीं चाहती थी । उसके सारे अरमानों पर पानी फिर रहा था । लेकिन उसके पास कोई विकल्प नहीं बचा था । जबसे संतोष आया था रवि उनके घर गया भी नहीं था । रवि को बताना जरूरी था इसलिए मीना रवि के घर किसी भी बहाने से आई । रवि वहीं पर था । वह रवि को सुनाकर उसकी मां से बतियाने लगी ।
"पांय लागी चाची" 
"खुस रहो बेटा , कैसी हो"
"ठीक हैं चाची । तोहार बेटा हमका दिल्ली ले जावत हैं अबकी बार" । मीना ने जानबूझकर थोड़ी तेज आवाज में कहा जिससे रवि सुन ले । रवि भी यह सुनकर चौंक पड़ा था अचानक । रवि और मीना की नजरें मिली और मीना ने अपनी नजरें नीची कर लीं । इशारों से ही बता दिया कि वह जाना नहीं चाहती थी मगर उसे जाना पड़ रहा है । रवि की मां ने कहा 
"ई काम तो अच्छो कर रह्यो है संतोष जो तोय दिल्ली ले जा रह्यो है । बाकै संग में रहेगी तो वाकी रोटी पानी की व्यवस्था भी हो जायेगी और तू भी अपने आदमी के पास रह लेगी । आखिर यहां अकेली रहकर कब तक जवानी बरबाद करेगी ?सुन, खूब सेवा करना वहां पर संतोष की । बेचारा अब तक अकेला ही दिन गुजार रहा था" । रवि की मां के चेहरे पर रहस्यमई मुस्कान खेल गई ।
मीना उनसे कैसे कहे कि वह जाना नहीं चाहती है । उसने अपनी सास का बहाना किया "मैं तो जाना नहीं चाहती हूं चाची । मां जी अकेली रह जायेंगी पीछे से । उनका कौन ध्यान रखेगा ? पर इन्होंने तो हठ पकड़ ली है इस बार । पता नहीं क्यों जिद करके बैठे हैं" ? 
"ठीक ही तो कर रहा है, संतोष । कब तक अकेला रहेगा बेचारा ? क्या सारी उमर ऐसे ही गुजारनी है ? दोनों संग रहोगे तो थोड़ा "तन का सुख" भी पा लोगे । मुन्ने का भी ध्यान अच्छे से रख पाओगे । रही शांति भाभीजी की बात , उनके लिये हम हैं न । उनकी चिंता मत करना" ।

सामान बस स्टैंड तक पहुंचाने के बहाने से रवि मीना के घर चला आया । मौका देखकर रवि ने मीना को अपने से लिपटा लिया और एक दीर्घ किस करके कहा "हमें प्यार का मीठा जल पिलाकर , प्यास और बढ़ाकर अब कहाँ जा रही हो , भाभी ?  कैसे जिएंगे हम तुम बिन, भाभी" ? रवि के स्वर में क्रंदन था ।
"मीना भी कैसे रहेगी वहां पर , ये हम कैसे समझाएं आपको लाल जी ? हम तो मर ही जायेंगे तोहार बिन । आपको देखकर ही जीते हैं आजकल । आपको नहीं देखेंगे तो मर ही जायेंगे हम तो । तुम्हारे भैया मान ही नहीं रहे हैं तो का करें ? आप ही बताइए" ? मीना रो पड़ी ।

रवि के पास मीना की बातों का कोई जवाब नहीं था । उसे तो खुद की पड़ी थी । जब उसने मीना की मजबूरी देखी तो उसका हृदय भी द्रवित हो गया । कहने लगा "हम आपको कभी भूल नहीं पायेंगे, भाभी । आप हमारे दिल में हमेशा रहोगी" । 

"हम भी अपने दिल में हमेशा आपको बिठाये रखते हैं । अब कैसे निकाल पायेंगे हम आपको हमारे दिल से । पर का करें , कुछ नहीं हैं हमारे हाथ में । अब हमको जल्दी से बिदा करो यहां से। अपने चरणों की थोड़ी सी धूलि दै दो हमें, हम उसे सीस पर लगा लेंगे" । मीना रवि के चरणों पर झुक गई ।

मीना ने रवि के पैरों के नीचे से थोडी सी मिट्टी ली और मांग में लगा ली । मीना रवि से विदा होकर मुन्ने को गोद में लेकर घर के बाहर आ गयी और रवि सामान को लेकर तैयार था । रवि उनको बस में बैठाकर खाली दिल और खाली हाथ के साथ वापस आ गया । इस तरह एक दिन दो दिल जुदा हो गए । 

आज मामीजी के आने से पुरानी यादें रवि के जेहन में उतर आईं थीं । वो भी क्या दिन थे । रवि ने घड़ी की ओर देखा । दो बज रहे थे ।  रात बहुत हो चुकी थी । अगले दिन बेला और विनोद को दिल्ली घुमाना भी था इसलिए वह सोने की तैयारी करने लगा । 


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2 Comments

fiza Tanvi

15-Jan-2022 11:53 AM

Good

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Hari Shanker Goyal "Hari"

15-Jan-2022 01:07 PM

आभार आपका जी

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